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संसद भवन में लहलहाएगा रेगिस्तान का देशी "अंगूर"

रमेश शर्मा...
जैसलमेर। रेगिस्तान की भूमि भले ही बंजर हो लेकिन प्रकृति ने कुछ अनमोल सौगातें रेगिस्तान के लोगों को भी प्रदान की है। प्रचंड गर्मी की शुरुआत होते ही रेगिस्तान में विषम हालात में भी जिंदा रहने वाले पौधे फल देना शुरू कर देते हैं। इनमें से एक है रंग-बिरंगा पीलू। रंग-बिरंगे फल पीलू से लकदक जाळ (जाल) लोगों को बरबस ही अपनी तरफ आकर्शित करना शुरू कर देती है। 

एकदम मीठे रस भरे इस फल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे अकेला खाते ही जीभ छिल जाती है। ऐसे में एक साथ आठ-दस दाने मुंह में डालने पड़ते हैं। रेगिस्तान के इस फल को यहां लोग देशी अंगूर भी कहते है और उसी चाव के साथ इसे खाते भी हैं, लेकिन अब इस रेगिस्तानी फल का स्वाद दिल्ली के लोगों को भी नसीब होगा।

हाल ही में जैसलमेर के सांवता गांव के निवासी सुमेरसिंह भाटी ने पीलू को सुखाकर उसे प्रीजर्व कर दिल्ली की एक संस्था आईएम गुड़गांव को भेजे है जो इसे पौधशाला में लगाकर इसके पौधों को संसद भवन के गार्डन सहित दिल्ली के कई अन्य महत्वपूर्ण गार्डनों और बाग-बगीचों में लगायेगी।

भाटी ने बताया कि पीलू के सूखे फल को कोरियर द्धारा नोएडा स्थित संस्था को भेजा है जो अपनी पौधशाला में इसे लगाकर इसके पौधे बनायेगी और बाद में इसे संसद भवन गार्डन और अन्य कई गार्डनों में लगायेगी जिससे दिल्ली के लोग भी राजस्थान के इस रेगिस्तानी फल पीलू का लुफ्त उठायेगी।

उन्होंने बताया कि ये जैसलमेर सहित राजस्थान के लिए गर्व की बात है कि पीलू की झाड़ी जिसे स्थानीय भाषा जाळ (जाल) कहते हैं वो दिल्ली में अपने रंग बिरंगे और रस भरे फलों से वहां के बाग-बगीचों की शोभा बढाएयेगी।

प्रो. श्याम सुन्दर मीणा ने बताया कि यह एक मरूद्भीद पादप है और इसे यहां की जीवन रेखा भी कहा जाता है। अकाल और भीषण गर्मी के दौरान जब अधिकतर पेड़-पौधे सुख जाते है और उनमें पतझड़ शुरू हो जाता है इस समय भी ये पौधा हराभरा रहता है और ये फल देता हैै, जो यहां के आमजन के साथ जीव-जंतुओं में पानी और अन्य कई आवष्यक तत्वों की पूर्ति करता है।

उन्होंने बताया कि इसमें विटामिन सी और कॉर्बोहाइड्रेडस भरपुर मात्रा में पाया जाता है। इस पौधें की हरी टहनियां लगभग 3 हजार वर्षों से ग्रामीण क्षेत्रों में टूथब्रश और इसके पत्तों को माउथ फ्रेशनर की तरह प्रयोग में लिया जा रहा है। इसके अलावा ग्रामीण परंपरागत दवाई के रूप में भी इसके फल, फूल और पत्तियों आदि का कई रोगों के उपचार में प्रयोग करते हैं।

रेगिस्तान के इस फल के बारे में प्रसिद्ध है कि यह पौष्टिकता से भरपूर होता है और इसे खाने से लू नहीं लगती। साथ ही इसमें कई प्रकार के औषधीय गुण भी होते हैं। औषधीय गुण के कारण महिलाएं पीलू को लोग एकत्र कर सूखा कर प्रीजर्व कर लेती है ताकि बाद में जरुरत पड़ने पर ऑफ सीजन में भी खाया जा सके।

मारवाड़ में ऐसी मान्यता है कि जिस वर्ष कैर और पीलू की जोरदार बहार आती है उस वर्ष जमाना अर्थात मानसून अच्छा होता है। इस बार मारवाड़ में कैर व पीलू की जोरदार उपज हुई है। ऐसे में लोगों का कहना है कि इस बार मारवाड़ में अच्छी बारिश होगी।

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