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चैत्र नवरात्रि : चेतना को शुद्ध और पवित्र करती है देवी शक्ति

यह मान्यता है कि सम्पूर्ण सृष्टि देवी से ही उत्पन्न हुई है औैर देवी ही विभिन्न रूपों में इस सृष्टि में दृश्यमान हैं। नवरात्रि उन्हीं की अराधना का पर्व है। यह जीवन में ऊर्जा व नवीन संकल्प का प्रतीक है और स्वयं को पवित्र कर जीवन में संतुलन लाने का एक महान अवसर है। नवरात्रि की नौ रात्रियां अत्यंत अनमोल होती हैं और वे सूक्ष्म ऊर्जा से समृद्ध होती हैं। इन नौ दिनों के दौरान देवी शक्ति के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह 9 दिवसीय पर्व हर साल मार्च या अप्रैल के महीने में आते हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही नव वर्ष की शुरुवात होती है। चैत्र मास हिन्दी कैलेंडर का पहला माह होता है। इस बार चैत्र नवरात्रि 2 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं और 11 अप्रैल 2022 को समाप्त होंगे।

अध्यात्मिक धर्मगुरु श्री श्री रविशंकर के अनुसार, नवरात्रि के पहले तीन दिन महादुर्गा के रूप होते हैं, जो वीरता, आत्मविश्वास और तमोगुण की अधिष्ठाता का प्रतीक हैं। नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे-तीन दिन महालक्ष्मी के रूप होते हैं, जो धन और रजोगुण की अधिष्ठाता का प्रतीक हैं। नवरात्रि के आखिरी तीन दिन महासरस्वती का रूप हैं, जो ज्ञान और सत्व गुण की अधिष्ठाता का प्रतीक हैं। ये तीन मुख्य गुण हमारे विशाल ब्रह्माण्ड की स्त्री शक्ति माने जाते हैं। नवरात्रि के दौरान देवी की पूजा-अर्चना करने से हम इन तीन गुणों में सामंजस्य स्थापित करते हैं, जिससे वातावरण में सत्व की वृद्धि होती है।

नवरात्रि जड़ता और नकारात्मक प्रवृत्तियों से छुटकारा पाने का समय है, जिसे देवी द्वारा बैल का वध करने के रूप में सुंदरता से दर्शाया जाता है। जो सुस्त, असंवेदनशील और जड़तापूर्ण होता है, हम उसे क्या कहते हैं? एक बैल! सिर्फ देवी मां ब्रह्मा, विष्णु और महेश की संयुक्त ऊर्जा से ही इस बैल का विनाश कर सकती हैं। जैसे एक शिशु को जन्म लेने में नौ महीने लगते हैं, वैसे ही देवी नौ दिनों के विश्राम के उपरांत दसवें *दिन भक्ति और पवित्र प्रेम के रूप में प्रकट होती हैं।


 उस पवित्रता और भक्ति से देवी ने सुस्ती और जड़ता वाले बैल पर विजय प्राप्त की। शांति और व्यवस्था को स्थापित करने के लिये देवी ने प्रकट होकर कैसे असुरों का वध किया, इस संबंध में अनेक कथाएं हैं। ये असुर नकारात्मक शक्तियों का प्रतीक होते हैं, जो कभी भी किसी पर हावी हो सकते हैं। नवरात्रि आत्मा या प्राण का उत्सव है, जो स्वयं ही असुरों का विनाश कर सकता है। जब आप उत्साह और ऊर्जा से परिपूर्ण होते हैं, तो कोई भी असुर आप के पास नहीं आएगा और वे लुप्त हो जाएंगे। किसी समय देवताओं ने देवी मां से कहा कि 'आप को प्रकट होकर इनसे युद्ध करने की क्या आवश्यकता है? आपकी सिर्फ एक हुंकार से ही सारे राक्षसों का विनाश हो जाएगा और वे भस्म हो जाएंगे। परन्तु हमें पता है कि आप युद्ध इसलिए करती हैं, जिससे वह क्रीड़ापूर्ण और रंगमय हो जाए और संसार अत्यंत रोचक बन जाए। 


इसलिए आप आकर त्रिशूल, गदा और चक्र से क्रीड़ा करती हैं। और इन अस्त्रों से असुर भी शुद्ध हो जाते हैं और आपको प्राप्त करते हैं।' यह सिर्फ एक ही प्रकाश और चेतना है, जो स्वयं में वापसी के लिए दो भूमिका निभाती है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि कोई दो भिन्न शक्तियां नहीं होतीं। सिर्फ एक ही शक्ति होती है, जिसके दो रूप होते हैं। देव और असुर अलग अलग रूप में आते हैं, फिर एक ही रूप में विलीन हो जाते हैं। देवी मां को सिर्फ बुद्धि में सर्वश्रेष्ठ के रूप में ही नहीं, बल्कि भ्रांति के रूप में भी पहचाना जाता है। वे सिर्फ प्रचुरता या लक्ष्मी ही नहीं, परन्तु भूख या क्षुधा और तृष्णा भी हैं। सारे ब्रह्माण्ड में देवी मां के इस स्वरूप की पहचान होने से कोई ध्यान की गहन अवस्था में जा सकता है। देवी मां वह नहीं हैं, जो सिर्फ हाथ में बड़ा त्रिशूल धारण किये हुए हैं। 


वह ऊर्जा का एक स्वरूप हैं और दिव्यता की अभिव्यक्ति हैं। देवी मां या पवित्र चेतना ही सभी रूपों में व्याप्त है, जिसके अलग अलग नाम हैं। इस पवित्र आत्मा के विविध स्वरूप का आह्वान नवरात्रि के दौरान किया जाता है। जैसे आप गर्भ में नौ महीने बिताए, इन नौ दिनों को स्वयं के साथ व्यतीत करें और एक नई शुद्ध चेतना का सृजन करें। फिर सारे बुरे कर्म, स्मृतियां और संस्कार निर्मल होकर पवित्र हो जाएंगे।देवी शक्ति व्यक्ति की चेतना को शुद्ध और पवित्र करती है और फिर सार्वभौमिक *चेतना और सृष्टि भी पवित्र और शुद्ध हो जाती है। नवरात्रि के समाप्त होने के बाद हम उत्सव मनाते हैं। 


दसवां दिन- विजय का दिन। इस दिन बुरी शक्तियों पर देवी मां की विजय का उत्सव मनाया जाता है।यह हमारी दिव्य चेतना की पराकाष्ठा के जागरण का दिन है। जो कुछ भी आप को प्राप्त हुआ है, उसके लिए कृतज्ञता और सम्मान की अनुभूति करें। नवरात्रि आत्मा या प्राण का उत्सव है, जो स्वयं ही असुरों का विनाश कर सकता है। जब आप उत्साह और ऊर्जा से परिपूर्ण होते हैं, तो कोई भी असुर आप के पास नहीं आएगा और वे लुप्त हो जाएंगे।  


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